मलेरिया: लक्षण, उपचार और रोकथाम

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मलेरिया: लक्षण, उपचार और रोकथाम

 

मलेरिया: लक्षण, उपचार और रोकथाम

नमस्कार दोस्तों सुवागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से जानेगे की मलेरिया: लक्षण, उपचार और रोकथाम इस ब्लॉग पोस्ट को पूरा पढ़े |

मलेरिया एक परजीवी के कारण होने वाली बीमारी है। यह परजीवी संक्रमित मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलता है। मलेरिया से पीड़ित लोगों को आमतौर पर तेज बुखार और कंपकंपी के साथ बहुत बीमार महसूस होता है। जबकि यह बीमारी समशीतोष्ण जलवायु में असामान्य है, मलेरिया अभी भी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय देशों में आम है।

स्वास्थ्य मानव का जन्मसिद्ध अधिकार हैं। स्वास्थ सुखी जीवन का सम्बल है। स्वास्थ्य मानव समुदाय एवं राष्ट्र का आधार स्तम्भ है। वह अपने परिवार, पड़ौसी नगर, समुदाय के प्रति सेवाएँ देने में समर्थ रहता है। वह अपनी कार्यक्षमता से पारिवारिक आजीविका, जीवन की चुनौतियों एवं कठिनाइयों का सामना साहसपूर्वक कर सकता है।

अधिक उत्पादन एवं आर्थिक स्तर ऊँचा उठाने में स्वस्थ लोग मददगार रहते हैं। यही कारण है कि सरकारें एवं स्वयंसेवी संस्थाएँ शहरों से ग्रामीण अंचल तक कार्य करती है। इसी सन्दर्भ में जॉन लॉक ने ठीक ही कहा कि “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।

” अतः आज अन्तर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य सम्बल के अनेक कार्यक्रम सरकार विशेष अभियान के रूप में चला रही है। आज हमारे राष्ट्र में अनेकों ऐसी बीमारियाँ फैली हुई है, जो हमारे राष्ट्र के मार्ग में अवरुद्ध बनी हुई है। इन अनेकों बीमारियों में से मलेरिया एक विकट समस्या के रूप में हजारों सालों से बनी हुई है। जो सम्पूर्ण विश्व में ये यक्ष प्रश्न हैं।

मलेरिया का अर्थ

मलेरिया (malaria) शब्द की व्युत्पति मध्यकाल समय में इटालियन भाषा के दो शब्दों माला+एरिया’ से हुई। जिनका अर्थ है mala यानि ‘बुरी’ तथा ria यानि ‘हवा’। इस प्रकार अर्थ हुआ ‘बरी हवा’, इसे दल दली बुखार भी कहते है। अंग्रेजी के “marsh fever” के या एग (ague)भी कहा जाता है क्योंकि यह दलदली क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैलता है।

मलेरिया क्या है ?

लेरिया एक परजीवी के कारण होने वाली बीमारी है। यह परजीवी संक्रमित मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलता है।  मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से एक है जो कि भयंकर जन स्वास्थ्य समस्या है। यह रोग प्लास्मोडियम गण (plasmodium) के प्रोटोजोआ परजीवी के माध्यम से फैलता है। इस प्रोटाजोआ का नाम प्लास्मोडियम (plasmodium) इटली के वैज्ञानिक एतोरे मार्चियाफावा तथा आजेलो सेली ने रखा था।

क्यूबाई चिकित्सक कार्लोस फिनले ने पीत ज्वर का इलाज करते हुए पहली बार प्रमाणित किया कि मच्छर रोग  एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य तक फैलाते हैं। मलेरिया (malaria) पर है। यह एक प्लास्मोडियम (plasmodium) नामक परजीवी प्रोटोजोआ की जातियों से होता है।

लक्षण

मलेरिया फैलने के निम्न लक्षण है

  • बुखार
  • ठंड लगना
  • सामान्य असुविधा की भावना
  • सिरदर्द
  • समुद्री बीमारी और उल्टी
  • दस्त
  • पेट में दर्द
  • मांसपेशियों या जोड़ों में दर्द
  • थकान
  • तेजी से साँस लेने
  • तेज़ हृदय गति
  • खाँसी

मच्छर द्वारा काटने पर मच्छर की लार के साथ हंसिया कार स्पोरोजोडटे (porozoites) के रूप में प्लास्मोडियम शरीर में प्रवेश करता है। रक्त प्रवाह के समय यह यकृत (liver) में पहुँच जाता है। जहाँ पर यह द्विगुणित करता है। यह सात (7) से चौदह दिनों के अन्दर स्पोरोजोमट से 5000-10,000 गोलाकार मीरोजोइट (merozoite) बन जाती है।

ये मीराजोइट हजारों की संख्या में यकृत में पुनः पहँचकर छिप जाते है और अब लाल रक्त कणिकाओं (red blood corpusclesr.b.c) पर अटैक करते हैं जहाँ ये वृद्धि और बहुगुणन करते हैं।

इन कोशिकाओं को चीरकर और अधिक मात्रा में मीरोजोइट निकलते है जो फिर (r.b.cs) पर अटैक करते हैं। एक सप्ताह में बार-बार बुखार, कंपकंपी तथा ठण्ड लगती है।

सांस फूलना, चक्कर आना, रक्तहीनता के लक्षण उभरते है। ऐसा इसलिए होता है कि लाल रक्त कणिका बार-बार फूटती है और मीरोजोइट रक्त में विषाक्त पदार्थ निकालती है। मच्छरों के काटने से मलेरिया नहीं इनके अलावा बहत सारे रोग मच्छरों के काटने से फैलते हैं।

सर्वप्रथम मलेरिया परजीवी की खोज

सन् 1898 ई. में सर रोनाल्ड रॉस सर्वप्रथम पता लगाया। सर रोनाल्ड रॉस पहले ब्रिटिश भारत में स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में नियुक्त थे। जिसने सर्वप्रथम सिकन्दराबाद (भारत) में मलेरिया परजीवी की खोज की थी।

बाद में इनके शोध-पत्रों पर विश्वास नहीं करने पर उन्होंने वापस ब्रिटेन में जाकर नवस्थापित ‘लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन’ में कार्य किया। ब्रिटेन में सन् 1902 ई. में रसायन शाला में 2000 मच्छरों के परीक्षण करने पर आपने शोध किया, जिसमें अन्तिम तीन (3) मच्छरों के परीक्षण करने पर आपने शोध में पाया कि मलेरिया के परजीवी द्वारा मनुष्य के रक्त कणिकाओं (r.b.c.) में प्रवेश करने पर वे द्विगुणित हो जाते है।

मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनोफिलेज (anopheles) मच्छर है। यह मच्छर रात को मनुष्य को काटता है। मलेरिया के रोगाणु की तीन प्रकार की किस्में है जो इस प्रकार है-मलेरिया टर्शियाना, क्वार्टाना और ट्रोपिका।  जिसमें सबसे खतरनाक मलेरिया ट्रोपिका है।

प्लास्मोडियम परजीवी की प्रजातियाँ

प्लास्मोडियम परजीवी गण की चार प्रजातियाँ है। 1. प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम (plasmodium falciparum&p-f) 2. प्लास्मोडियम ओवेल (plasmodium ovale &p-o) 3. प्लास्मोडियम विवैक्स (plasmodium vivax&p-v) 4. प्लास्मोडियम मलेरिये (plasmodium malariae&p-m) इन चारों में से सर्वाधिक खतरनाक प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम तथा प्लास्मोडियम विवैक्स माने जाते है तथा प्लास्मोडियम मलेरिये भी मनुष्य को प्रभावित करते है। इस सारे समूह को ‘मलेरिया परजीवी’ कहते है।

मच्छरों के काटने से फैलने वाले अन्य रोग

 जैसे-मनुष्य में चिकनगुनिया का संक्रमण CHIKV संक्रमित मच्छर के काटने से होता है। एडिज एजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है, जो घरों में जमा पानी में प्रजनन करता है एवं दिन के समय काटता है, का प्राथमिक वाहक है। ‘चिकनगुनिया’ शब्द दक्षिण अफ्रीका की स्वाहली भाषा का है जिसका अर्थ है ‘झुकादेना। चिकनगुनिया की प्रमाणित दवा नहीं है।

इसका इलाज बचाव ही उपचार है। जो चिकित्सा उपलब्ध है वह मात्र लाक्षणिक ISYMPTOMATIC) मच्छरों से फैलने वाला ऐसा ही एक और रोग है, जो डेंगू (DENGUE FEVER OR BREAK DONE FEVER) है जो मच्छरों के संक्रमण द्वारा फैलता है, इनके बाहक (1) एडिज इजिप्टी (2) एडिस एल्बोपिक्टस (3) क्यूलेक्स फटिगन्सस नामक मच्छर संचारित करते हैं।

इस रोग से अचानक तेज बुखार आता है, चेहरे पर लाल पितियाँ आती है। इसमें जोड़ों, पेशियों में बहुत दर्द होता है। इस रोग को ‘हड्डी बुखार’ भी कहते है। इस रोगी के शरीर से खून बहने लगता है, खून रिसाव वाला डेंगू बुखार (dengue fever) 1958 ई. में फिलीपींस में सर्वप्रथम मालूम हुआ।

भारत म डेंगू का प्रथम मामला

भारत में डेंगू बुखार (dengue fever) का पहला मामला सन् 1963 ई.में कोलकाता में सामने आया था। वर्तमान में मलेरिया भूमध्य रेखा के दोनों तरफ विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है। इन क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय जलवायु के कारण मलेरिया वाहकों को अनुकूल वातावरण मिल जाता हैं।

जिससे यह अपनी उतरजीविता बनाये रखने में सक्षम हो जाते हैं। मलेरिया वितरण समझना थोड़ा जटिल है, मलेरिया प्रभावित क्षेत्र तथा मलेरिया मुक्त क्षेत्र प्रायः साथ-साथ होते हैं, सूखे क्षेत्रों में इसके प्रसार का वर्षा की मात्रा से संबंध है। हाल ही में ब्रिटेन की ‘वेलकम ट्रस्ट’ ने ‘मलेरिया एटलस परियोजना’ को इस कार्य हेतु वित्तीय सहायता दी।

मलेरिया दिवस

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 25 अप्रैल को मलेरिया दिवस मनाते है। पिछले कई सालों से ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ इस दिन को ‘अफ्रीकी मलेरिया दिवस’ के रूप में मनाता था। पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रथम बार 25 अप्रैल 2008 को मनाना शुरु किया। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) अनेकों अभियान चलाता है, अनेकों कार्यक्रम की रूपरेखा बनाकर हर राष्ट्र को भेजता है तथा उस कार्यक्रम वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाता है।

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‘राष्ट्रीय मलेरिया संरक्षण कमेटी’

भारत सरकार सर्वप्रथम सन् 1953 ई. में ‘राष्ट्रीय मलेरिया संरक्षण कमेटी’ बनायी। उसके बाद सन् 1958 में राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम घोषित किया। इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने बहुत सारे कार्यक्रम चलाए लेकिन वही ढाक के तीन पात रहा। देश के लिए चढ़ता बुखार, बहता मलेरिया खतरनाक है। सन् 1992 के  बाद राष्ट्रीय स्तर पर विशेष कोई जागरूकता कार्यक्रम नहीं चलाया।

अब वर्तमान में हमारे देश में मलेरिया विशेष रूप में पांव पसारने लगा है, विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान दलदली क्षेत्र, नहरी क्षेत्र, गहन धनत्व वाले क्षेत्र, समुद्र तटीय क्षेत्र, घने वन क्षेत्र आदि क्षेत्रों में मलेरिया का प्रकोप है। जो कभी-कभी एक छोटा सा कीट, केन्द्र सरकार, राज्य सरकार एवं आम नागरिक के लिए एक चुनौती भरा प्रश्न बन जाता है। जब तक आम नागरिक जागरूक नहीं होगा, उसकी जवाबदेही नहीं बनेगी तब तक यह कीट अपना शासन चलाता रहेगा।

प्रकृति चक्र दूषित

मानवीय विलासिता एवं तेज रफ्तार से चलने वाली जीवनशैली के कारण प्रकृति चक्र दूषित हो जाता है। जिसके कारण वातावरण में अनेक कीटाणु, जीवाणु एवं विषाणु अपना जीवन सरल बना लेते है जिसके शिकार आम नागरिक बनते है क्योंकि कोई भी जीव-जन्तु अपनी उत्तरजीविता बनाए रखना चाहते है। इस कारण उनको अनुकूल वातावरण आवश्यक है और वह अपने कार्य में सक्षम हो जाते हैं। यह राष्ट्र के लिए एक विकट समस्या बन जाती है।

व्यक्तिगत स्वच्छता के अलावा भी 

अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता के साथ-साथ हमारे घर, विद्यालय एवं अन्य सार्वजनिक स्थान साफ-सुथरे रखने चाहिए। घरों के आस-पास एकत्र गन्दगी एवं दषित पानी के फैले रहने से वातावरण दूषित होता है।

मलेरिया से बचने के लिए मच्छरों द्वारा काटे जाने से बचना चाहिए। मच्छरों ds संख्या बदि रोकने के लिए आस-पास के गड्डों में पानी एकत्र नहीं होना चाहिए एवं नम वातावरण बनने से रोकना चाहिए। घरों में D.D.T. के पाउडर का छिड़काव करना चाहिए।

व्यक्तिगत स्वच्छता के साथ-साथ आम नागरिक को समग्र होकर राष्ट्र के इस अभियान में जवाबदेही बनकर कार्य करना होगा। तभी राष्ट्र मूलभूत बीमारियों से मुक्ति पा सकता है। ये सभी बीमारियाँ गन्दगी एवं दूषित वातावरण के कारण फैलती है।

इस दुषित वातावरण के वास्तविक वाहक बदलती मानवीय जीवन शैली एवं प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप जीवन शैली नहीं अपनाने के कारण प्राकृतिक वातावरण का घटनाचक्र मानव शैली के विरुद्ध होने से मानव अनेक बीमारियों से जकड़ गया है, क्योंकि प्रकृति अपने वातावरण घटक बनाए रखने में सक्षम है।

जिसमें आम नागरिक, संचार मीडिया, प्रिन्ट मीडिया, स्वास्थ्य मंत्रालय आदि को जागरूकता कार्यक्रम में विशेष भागीदार बनना चाहिए।

डॉक्टर से तुरंत उपचार

मलेरिया के लक्षण देखते ही रोगी को खून की जाँच कराकर उपयुक्त दवा जैसे-कुनैन कैमाक्विन, क्लोरोक्चिन आदि चिकित्सक के परामर्शनुसार लेनी चाहिए। मलेरिया उन्मूलन के लिए सार्वजनिक स्थानों पर स्वयंसेवी संस्थाओं के आस-पास पानी के गढ्ढे, नालियों में पानी का जमाव, घरों के पानी के नल खुले नहीं छोड़ने चाहिए।

इन सब का समुचित रूप से उपयोग करते हुए स्वस्थ राष्ट्र के स्वस्थ नागरिक’ बनना चाहिए। सम्पूर्ण राष्ट्र में मलेरिया उन्मूलन जागरूकता कार्यक्रम चलाना चाहिए। 

राष्ट्र स्तर पर कार्यक्रम

राष्ट्र स्तर पर ‘मलेरिया उन्मूलन परिषद’ बनना चाहिए, राज्य स्तर पर ‘राज्य मलेरिया उन्मूलन कमेटी’ बननी चाहिए तथा जिला तहसील एवं खण्ड स्तर पर मलेरिया उन्मूलन कमेटियाँ बनाकर केन्द्र सरकार को मोनीटरिंग करनी चाहिए। नगर या ग्राम स्तर पर ‘मलेरिया उन्मूलन पंचायत कमेटी’ बननी चाहिए

जिसमें पंचायत मुखिया अध्यक्ष एवं वार्ड मेम्बर कमेटी सदस्य बनकर हर सप्ताह इस बीमारी की प्रगति रिपोर्ट खण्ड स्तर पर भेजनी चाहिए। यह शृंखलाबद्ध कार्यक्रम राष्ट्र स्तर तक पहुँचना चाहिए। जिससे मलेरिया के फैलने में कमी की जा सकती है।

आम नागरिक को इस पवित्र कार्य में भाग लेकर एक सजग स्वच्छ राष्ट्र का स्वस्थ नागरिक बनना चाहिए। तभी राष्ट्र प्रगति के पथ पर बढ़ेगा क्योंकि जिन राष्ट्रों में मलेरिया अधिक है उन राष्ट्रों की आर्थिक विकास दर मलेरिया मुक्त राष्ट्रों की अपेक्षा कम हैं।

W.H.O. की सर्वे रिपोर्ट 

W.H.O. की सर्वे रिपोर्ट 

यह सर्वे रिपोर्ट वर्तमान में W.H.O. ने जारी की। 5 अप्रैल 2016 को श्रीलंका को ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ ने मलेरिया मुक्त राष्ट्र घोषित किया तथा 2015 में मालद्वीव को मलेरिया मुक्त घोषित किया।

वर्तमान में विश्व में 33 देश ऐसे हैं, जिनको W.H.O. ने मलेरिया मुक्त देश घोषित किया। W.H.O. ने सन् 2030 तक 35 देशों को मलेरिया मुक्त करने का लक्ष्य रखा जिसमें भारत भी शामिल है। भारत सरकार ने इस वर्ष फरवरी में सन् 2030 तक मलेरिया मुक्त होने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

अंतिम शब्द

दोस्तों आज हमने मलेरिया: लक्षण, उपचार और रोकथाम के बारे में जाना मुझे आशा है मेरी इस पोस्ट से आपको मलेरिया: लक्षण, उपचार और रोकथाम के बारे में काफी जानकारी मिली होगी अगर आपको मलेरिया: लक्षण, उपचार और रोकथाम ये पोस्ट पसंद आती है तो इसको फेसबुक , इंस्ट्राग्राम, व्हाट्सप्प  पर शेयर जरूर करे और हमसे जुड़े रहे

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