संगत का फल – हिंदी कहानी

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संगत का फल – हिंदी कहानी

संगत  का फल - हिंदी कहानी

 

पुराने जमाने की बात है, प्लेग बीमारी से एक महा बीमारी बनकर काल बनकर उभरा इस बीमारी से गांव के गांव खाली हो गये थे। मानव असहाय हो गया । उस गांव में एक बच्चे का सारा परिवार खत्म हो गया वो अकेला प्राणी बचा वहां के ठाकुर ने अपने भेड बकरी चराने के लिए उसे रख लिया।

ऐवड़ जंगल में रहता वहां बच्चा रहता उसका खाना पानी वहां पर भेज  दिया जाता था।  वह एक दास बनकर रहे गया कोई सुनने वाला नहीं । उसी जंगल में एक तालाब था वहां ऐवड पानी पीने जाता था। अन्य जानवर वही’ पानी पीने आते थे।

पहले व्यापारी का काम बणजारे जाति के लोग परिवहन के रूप में बाल्द से माल ढोते थे । बणजारे का नाम लखी बणजारा था बहुत पैसा वाला था माल परिवहन उसके बाल्द से मारवाड़ रियासत में होता था।

एक समय लखी बणजारे का  बाल्द (बैल, घोडों पर माल लदे रहता) पानी पीने उसी तालाब पर पहुंचा |  उसी समय ठाकुर का ऐवड पानी पीने तालाब पर पहुँचा, बणजारे के साथ बणजारी थी। हीरे पन्ने जड़े पौशाक पहनी हुई थी उसके पास खूब रूपये पैसे थे ।

 समय की नजाकत देखिये वह बालक ऐवड लेकर आया वहा पर वे बालक वहा पानी पशुओं की तरह पी रहा था। लखी बनजारे ने कहा देखो बणजारी इंसान कितना मूर्ख है जो पानी पशुओं की तरह पानी पी रहा है,

बणजारी ने कहा “संगत का फल है” बणजारा चिढ़ कर बार-बार कहे रहा है इंसान में इतनी बुद्धि नहीं है। बणजारी ने कहा संगत का असर है” बणजारा क्रोध में आकर बणजारी को छिंदी  देदी यानि ओढ़नी  को फाड़कर एक लीरा  दे दिया जिसका मतलब होता है आज से हमारा संबंध विच्छेद हो गया, तुम तुम्हारे रास्ते में मेरे रास्ते , आज से संबंध ख़त्म है | 

जब लखी बणजारा छन्दी (तलाक) देकर वहां चला गया। तब बिणजारी अकेली वहां बालक ( ऐबङ चराने वाले) का इन्तजार कर रही थी। बिणजारी के ओढ़नी  में कुछ हीरे जड़े हुए थे और पैसे उसके पल्ले बंधे थे। बिणजारी ठाकुर एवं सामन्तों से डरकर कैर की झाड़ी में छुपकर शाम होने की प्रतीक्षा कर रही थी | ऐवाड़े के फलसे के पास ऊँचा खूंटा गड्डा हुआ था | 

जब शाम  गोधूलि की वेला में पक्षी आकाश में आवागमन कर रहे थे सूर्य अपनी माँ के घर जाने की तैयारी कर रहा था मौसम ठण्ड का था झीनी – झीनी सुहावनी ठंडी आ रही थी थी उस समय ठाकुर के नौकर घोड़ा लेकर आया ऊँचे खूंट में एक नातणा में दो रोटी बंधी थी खूंटे में टांग कर चला ये घटना बिणजारी देख रही थी। जब नौकर चला गया। जब ऐवड. ( भेड़ बकरियां का झुण्ड) आने वाला था

बिणजारी कैर की झाडी से बाहर आकर चारों तरफ देखा कोई आ तो नहीं रहा है। वो खूंटे  में टांगे नातणे ( सूत का बना हुआ रुमाल टाईप का कपडा ) को खोला उनमें दो बाजरी की रोटियाँ निकली, उसने बालक जहां रात को सोता था वहां जाकर देखा वहां आग ओटी हुई थी  (यानि उप्पले में को थोडा जलाके राख में ढक  देते वह धीरे-धीरे जलता  रहता है। ) एक खाने का बर्तन एक घणेची रखी हुई थी।

बिणजारी ने आग जलाई पानी गर्म किया उतने में ऐवड- और लङका आ गया। लङका बिणजारी को देखकर डर गया क्योंकि वहां शाम को कोई नहीं आता था। बिणजारी  ने कहा भतीज दर  मत में तेरी जिमनी बुआ हूँ। तेरे से मिलने आयी हूं। बालक को  पता नहीं था की हमारी कोई बुआ थी। बिणजारी ने उसे  काफी देर समझाया उसको विश्वास दिलाया।

लड़के ने सोचा हमारी बुआ होगी क्योंकि उसका परिवार जब बालक पांच साल का था तब महामारी में खत्म हो गया। जब बालक पास में आया उसका  हाथ मुंह धुलवाया फिर बर्तन में बकरियों को दुहकर दूध लायी | उसमें रोटीया डालकर पकाया। फिर खाना खाकर सो रहे तब बिणजारी ने उसके परिवार जानकारी ली गांव में कहां घर है, कौन-कौन परिवार में थे।

बंजारी ने उसको समझाया की कल गांव जाकर रानी साहिबा को  कहना मेरी जिमनी बुआ आई है। ऐवड़  जिमनी बुआ चराने गई लड़‌का गांव गया तो वहां नौकर व ठाकुर उस बालक  धमकाने लगे ऐवड को छोड़कर कैसे आ गया लड़का बोल नही पा रहा इतनें में ठकुराईन आयी वह बहुत दयावान थी। उस बालक ने  सारी बात बताई तो ठकुराईन अपने पास बुलाया नौकर को कहा नाई को बुलाकर ले आओ। बालक की बुरी दशा थी।

जब नाई आया उसको बाल बनाये फिर ठकुराइन ने दासियों कहा इसको स्नान कराकर कपडे पहनाओं। उस  ठकुराईन ने बालक को कहा जब ऐवड जाओ तो यहां से दाल तेल, घी मिर्च मसाला ले जाना है। और तेरी बुआ को कहना तुम्हे ठकुराईन ने घर बुलाया है |  जब बालक ऐवाङ गया तब बुआ को सारी बात बताई  बिणजारी इसी बात का इन्तजार कर रही थी। दूसरे दिन बिणजारी गांव आई तो ठकुराईन को सारी बात बताई मेरे इतने भाई थे मेरे पिता का घर उस बास में था। अब केवल मेरा भतीज जिंदा रहा है।

ठाकुर गांव के चौधरियों को बुलाया उनको जिमनी बुआ के बारे में बताया तो उन्होने बताया कि हां मोटाराम के बेटी जिमनी है उसके चार भाई थी सारे माहमारी में मर गये से एक भतीज रहा है। तब ठाकुर ने कहा उसकी जगह में झोपड़ा बना दो खाने-पीने का इन्तजाम कर दो ताकि, जिमनी बुआ और उसका भतीज वहां आराम से रहे सके।

चौधरियों ने जाकर अपनी बास में उनके रहने की सारी व्यवस्था कर दी थोडे दिनों बाद बालक को जिमनी बुआ को सौंप दिया। बुआ-भतीजा साथ-साथ रहने लगा बिणजारी ठाकुर के खाना बनाने गायें भैसे दूहने का काम  करने लगी उनको मजदूरी मिल जाती अपने दिन अच्छी तरह काटने  लगी। बिणजारी के पास  कुछ हीरे थे। उसको मालूम था आस-पास में कौनसा शहर है। एक दिन गई एक हीरा बचके पैसे ले आयी। फिर घर ठीक करवाया धीरे-धीरे जिमनी बुआ गांव में प्रसिद्ध हो गई।

बिणजारी को अपना लक्ष्य पूरा करना था। बालक को अच्छे संस्कार दिये | बड़े लोगों को प्रणाम कर पैर छूना चाहिए। धीरे-धीरे बालक बहुत  होनहार और  संस्कारी  बन गया, लेकिन उस गांव में स्कूल नहीं था | उसने गांव वालों से स्कूल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया अपने पड़ोस में चार किमी दूर गांव में एक पांचवी जमात तक की स्कूल है। पहले जमानें की पांचवीं क्लास आज की एम.ए. बराबर है।

बिणजारी चौधरी साहब को लेकर पड़ोस के  गांव में जाकर प्रधानाध्यापक   जी से मिले और कहा कल प्रवेश कर देंगे। एक गणवेश, थैला , पाटी इत्यादि दिलाकर भेज देना। बिणजारी  शहर जाकर पौशाक, थैला , पाटी और पानी पीने की दीवड़ी (रेशम के कपडे की बनी होती है। ) लेकर आयी। दूसरे दिन उस गांव के कुछ बच्चे बालक को पहली जमात में पढ़ने जाते थे उनके साथ भेज दिया प्रवेश दे दिया। स्कूल से जब छुटटी होती उस गांव के सभी बच्चे पैदल चलकर घर आ जाते थे।

बिणजारी का भतीजा पढाई अव्वल था। उसके  गुरूजन उनकी खूब प्रशंसा करते थे। वो हर कक्षा प्रथम आता था। ऐसे पढ़ते-पढते पांचवी जमात में आया और शिक्षा पूरी होने वाली ही थी चैत्र-वैशाख का महीना था। उस समय वहाँ से महाराजा की आखेट सवारी वहां से गुज रही थी।

महाराजा शिखार के पीछे-भागते हुए रास्ता भटक गये थे उनके लावलश्कर पीछे छूट गये थे। गर्मी बहुत तेज थी उसी महाराजा को बहुत प्यास लगी, आस-पास कहीं पानी नजर नहीं आ रहा था प्यासे मरते महाराजा के प्राण सूख रहे थे। उसी समय उन बच्चों की स्कूल से छुटटी हुई वह बच्चे अपने बस्ते व पानी की दीवड़ी भर कर अपने गांव रवाना हुए आधा रास्ता तय करने पर को घोड़े पर सवार दिखा बच्चे हंसते खेलते आ रहे थे तो महाराजा आभास हुआ कोई मानवी आ रहे हैं थोड़ी देर में बालक को  आ गये।

महाराजा ने पूछा बच्चों पानी है क्या? बच्चे घबरा गये लेकिन बिणजारी का भतीजा हजार जवाब दिया हाँ पानी है, दूसरे बच्चों  अपनी पानी की दीवड़ी छिपा ली थी, लेकिन उस बच्चे ने महाराजा को दीवडी दी महाराजा ने ठण्डा पानी पीकर  खुश हुआ और बच्चे को पूछा किसका है  उन्होने सारी बात  बताई महाराजा ने पढ़ाई के बारे में कई प्रश्न किये | 

बच्चे ने बहुत अच्छे ढंग से उतर दिये। महाराजा खुश हुआ कहा मैं तुम्हें मेरे नौकर रखूंगा तो बच्चा बोला मेरी बुआ को पूछे बिना मैं आपके साथ नहीं चल सकता हूँ। महाराजा ने कहा तुम्हारी बुआ कहां रहती है,

बालक ने बताया पास के गांव में रहती है। महाराजा ने कहा तुम्हारी बुआ को  बुलाकर यहां लाओ  बालक ने हामी भरली। वही से चल दिया घर गया बुआ को सारी बात बताई बिणजारी उसके साथ रवाना  होकर महाराजा के पास पहुंची और दुआ सलाम किया और महाराजा को कहा क्या गलती हो गई अन्नदाता ? 

महाराजा ने कहा कोई गलती नहीं हुई मैं तुम्हारे भतीजे को नौकरी देना चाहता हूँ। बिणजारी ने कहा एक शर्त मेरी है, अन्नदाता । महाराजा बोला क्या है बिणजारी बोली इसको चौकियों पर ठाण की नौकरी देवो (डाण यानि आज के कस्टम अधिकारी) जो चौकियों पर माल की जांच करता है।

महाराजा ने कहा मैं डाण बना  दूंगा। बिणजारी ने कहा मेरे गांव के आगे तालाब है वहां चौकी है  उस चौकी का डाण बना दो। महाराजा ने कहा कल  दरबार लगेगा वहां आजाना

अगली सुबह बालक दरबार पहुंचा महाराजा ने स्वागत किया और मंत्री को कहा इसको  डाण ‘ का पत्र बनाकर दे दो वह लडका डाण पत्र लेकर गांव पहुंचा, अगले ही दिन उसको महाराजा ने उसको घोडा  घाडी नौकर चाकर दे कर चौकी पर  भेज  दिया। जब लड़का रवाना  हुआ अपनी बुआ के पैर छुआ और विदा  लेने लगा तब बिणजारी ने उसको कहा कोई बाल्द लेकर कोई लखी बणजारा गुजरे उसको रोक लेना वो तुमको कितना ही लोभ लालच दे नहीं  लेना और कहना मेरी बुआ कहेगी तभी तुमको जाने दूंगा। बच्चा  चौकी पहुँच गया अपने नौकरों को निगरानी पर लगा दिया उनके हाथों में बन्दुक  थमा दी।

कुछ दिन गुजरे वही लखी बणजारा जिसने बिणजारी की छींदी (तलाक) दी उसके बाल्द तालाब पर पानी पीने पंहुचा | नौकरो ने  उस डाण को सूचना दी कोई बाल्द आ रही है। डाण ने नौकरों को हुकुम दिया उसको बुलाकर लाओ नौकर गये बणजारे को कहा डाण साहब बुला रहे है।

बणजारे ने कहा आ रहा हूँ। लखी बणजारे ने सोचा ऐसा कौन आ गया मेरे का बुला रहा है ऐसे करते-करते पहुंचा और डाण साहब को मुजरा किया। डाण साहब ने बोला माल कहां से लाये हो चिट्ठी बताओ। पहले भी चोरी से मालगुजारी होती थी। लखी बिणजारे ने कहा साहब माल ले लो रुपये लेलो हीरे ले लो मेरे को यहां से जाने दो | उसने कहा किसी कीमत पर नहीं जाने दूंगा माल की चोरी करते हो यानि कर की चोरी। उसको (डाण को) बिणजारी की बात याद आयी।  लखी बिणजारे ने हाथाजोड़ी की कहा किसी कीमत पर मेरे को जाने दो सुबह राजा साहब पकड लेंगें।

तब डाण साहब कहाँ मेरी बुआ कहेगी  तो जाने  दूंगा। तो आपकी बुआ  कहां रहती है। इसी गांव में लखी बिणजारे ने नौकरों को घोडे दिये जाकर लिया। नौकर गये जिमनी को  कहा डान साहब आपको बुला रहे है। बिणजारी समझे गई आज लखी फस गया है। बिणजारी वही ओढ़ना ओढ़ कर हाथ में छींदी लेकर पहुंच गई।

फिर वहां कहा सुनी हुई बिणजारी ने कहा किसी भी सूरत में नहीं छोड़ेगे राजा साहब शिकायत करेगे तब लखीबिणजारा कमजोर पड गया बिणजारी के पैर छुने आगे हुआ बिणजारी पीछे सरक गई क्योंकि वो उसका पत्ती था। बिणजारी ने कहा इस बच्चे को पहचान ते हो कहा नही। फिर बिणजारी ने छींदी दिखाई तब अचानक लखीबिणजारे को याद आयी ये तो बिणजारी है। फिर बातचीत हुर्ह बणजारा रोने लगा,

बिणजारी ने कहा रोओ मत यह बालक वही है जो भेडों की तरह पानी पीता था। आपने कहा इंसान  होकर इसको  पानी पीने की तमीज नहीं है तब मैने कहा संगत का फल तो आपने मुझे छिंदी  दे दी थी।

यही मेरे संगत में रहा आज रियासत का डाण है। लखी बिणजारा माफी मांगी छींदी वापस ले ली आपस में समझौता किया और बालक को बिणजारी ने  कहा बेटा में तेरी हुआ नहीं हूँ। इस बिणजारे ने जिद कर लिया उसका कमाल है। सब अपने-अपने रास्ते चले गये तभी कहते हैं ” संगत के फल लगते है।” अच्छी संगत के अच्छे और बुरी संगत के बुरे फल लगते है

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